PTSD क्या होता है?

पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर एक मानसिक विकार है। इसके होने के मुख्य कारण किसी भयभीत घटना को होते हुए देख लेना, किसी परिचित की मौत, हत्या या दुर्घटना का दृश्य देखना हो सकते हैं। हर व्यक्ति में पीटीएसडी की समस्या होना अनिवार्य नहीं है, यह कुछ ही लोगों को प्रभावित करता है तथा एक बीमारी के रूप में विकसित हो जाता है। इस डिसऑर्डर से ग्रसित व्यक्ति अपने बुरे अनुभव को भुला नहीं पाता है तथा किसी भी समय उस घटना के याद आ जाने के कारण भयभीत हो सकता है। यह बिमारी उम्र तथा लिंग पर निर्भर नहीं है। किसी भी उम्र में PTSD हो सकता है। आम तौर पर महिलाओ में इस बीमारी के होने की सम्भावना ज्यादा देखी गयी है। साथ ही पाया गया है कि हार्ट अटैक के शिकार आठ में से एक व्यक्ति में पीटीएसडी के लक्षण दिखाई देते हैं।

PTSD का फुल फॉर्म Post-traumatic stress disorder (पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) होता है, जिसे हिंदी में अभिघातजन्य तनाव विकार कहा जाता है। आज हम आपको बताएंगे कि PTSD क्या होता है एवं इसके लक्षण क्या हैं, इसका उपचार क्या है? तथा यह किस प्रकार से किसी व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है ?

यहां क्लिक कर सुकूनमंत्रा के WhatsApp Channel से जुड़िये।

PTSD के लक्षण

घटना से सम्बन्धित सपने बार बार आना

PTSD से ग्रसित व्यक्ति किसी घटना के कारण मानसिक रूप से इस हद तक परेशान हो सकता है कि उसे घटना से संबंधित सपने बार-बार आने लगते हैं और वह अनिंद्रा का शिकार हो सकता है। PTSD के कारण उसके दिमाग के प्रमुख हिस्से प्रभावित हो जाते हैं। जो लोग इससे पीड़ित होते हैं उनके दिमाग के एक मुख्य हिस्से हिप्पोकैम्पस का आकार छोटा होता है।

घटना की बात करने से बचना

पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति उस घटना के बारे में बातें करने से भी बचने की कोशिश करता है क्योंकि इस बारे में बात करने से या उसका ख़याल मात्र ही आ जाने से उसे डर लगने लगता है। यहाँ तक कि वह उस स्थान पर जाने से भी घबराता है जहाँ यह घटना घटित हुई हो।

बार बार घटना का याद आना

मस्तिष्क को आघात पहुंचाने वाली घटना दिमाग में घर भी कर सकती है। जिसके कारण काम करते समय उसका बार-बार घटना याद आना कार्य के प्रति अरुचि को जन्म देता है और व्यक्ति अच्छे से कार्य नहीं कर पाता है। इस कारण उसे कई प्रकार की अन्य परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। जैसे नौकरी जाने का खतरा, व्यापार में नुकसान, परीक्षा में कम अंक आना या अनुत्तीर्ण हो जाना आदि।

घटना के याद आने के कारण अवसाद में चले जाना

व्यक्ति उस घटना के कारण डिप्रेशन में भी जा सकता है। इसका स्तर अलग-अलग लोगों में अलग-अलग हो सकता है, मस्तिष्क मूड को खुश रखने वाले हार्मोन रिलीज करना बंद कर देता है, इस कारण उदासी छा जाती है और अकेले रहने का मन करता है। अगर कोई व्यक्ति अवसाद (डिप्रेशन) का शिकार हो जाता है तो उसे तुरंत डॉक्टर की सलाह लेना चाहिए या फिर अपनी दिनचर्या में परिवर्तन कर अवसाद को कम करने की कोशिश करना चाहिए।

रिश्ते बनाए रखने में कठिनाई

पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर मरीज को रिश्तों को बनाए रखने या फिर नए रिश्ते बनाने में समस्या उत्पन्न कर सकता है। क्योंकि इस डिसऑर्डर के मरीज में आत्मविश्वास की कमी हो सकती है। जिस कारण वह कई प्रकार के काम करने, नये लोगो से बातें करने, नये काम करने, नई जगहों पर जाने से घबराता है।

अचानक चौंक जाना

घटना के याद आने के कारण व्यक्ति अचानक चौंक जाता है, उसे पसीना आने लगता है, यहां तक की चक्कर भी आ सकते हैं। यह सब मस्तिष्क में एकाएक आये नकारात्मक विचारों के कारण होता है। मन घबराने लगता है जिस वजह से रक्तचाप का स्तर भी गड़बड़ा जाता है। गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति को दवाईयों के सहारे ही जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है। यह बीमारी मानसिक रूप से तो प्रभावित करती ही है साथ ही व्यक्ति को शरीरिक रूप से भी बीमार कर देती है।

आसानी से गुस्सा आ जाना

किसी भी प्रकार के डिसऑर्डर व्यक्ति के व्यवहार में पूर्ण रूप से परिवर्तन कर देते हैं। उसके स्वभाव में आक्रोश की अधिकता भी हो सकती है। मन के शांत नहीं रहने, डरावनी घटनाओं के बार-बार याद आने के कारण व्यक्ति गुस्सैल बन जाता है और छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा होने लगता है। पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के कारण तनाव अत्यधिक बढ़ जाता है। व्यक्ति के मस्तिष्क में कई तरह की रासायनिक क्रियाएँ अनियंत्रित हो जाती है।

उपचार 

इस डिसऑर्डर के लक्षण दिखने में समय लग सकता है। सामान्यतः तीन महीने में इसके लक्षण दिखने लगते हैं। कुछ मामलों में घटना के तुरंत बाद भी लक्षण दिखाई दे सकते हैं और सालों तक बने रह सकते हैं। इस डिसऑर्डर के निदान के लिए विशेषज्ञों की सलाह की आवश्यकता होती है। इससे बाहर आने के लिए काउं‍सलिंग, सपोर्टिव टॉक थेरेपी, कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) व अन्य साइकोथेरेपी का उपयोग किया जाता है। यह व्यक्ति की बीमारी की गंभीरता पर निर्भर है कि इसका निदान किस प्रकार किया जाएगा। इससे बाहर आने में कई वर्षों का समय भी लग सकता है। मनोचिकित्सक इसके इलाज के लिए दवाइयों का भी प्रयोग कर सकते हैं। एसएसआरआई और एसएनआरआई पीटीएसडी के लिए कुछ सबसे प्रभावी मेडिसिन्स हैं पर डॉक्टर के परामर्श के बिना किसी भी प्रकार की मेडिसिन लेना जानलेवा हो सकता है इसलिए डॉक्टर की सलाह के बिना किसी भी दवा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

FAQs

क्या पीटीएसडी अपने आप ठीक हो सकता है?

जी हाँ! पीटीएसडी कई बार बिना किसी उपचार के भी अपने आप ठीक हो सकता है। इसके प्रभाव कुछ महीनों बाद अपने आप चले जाते हैं कभी-कभी इसका प्रभाव वर्षों तक रह सकता है।

यह भी पढ़ें:

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here